होलिका का पूजन क्यों?


लोगों के मन में एक प्रश्न रहता है कि जिस होलिका ने प्रहलाद जैसे प्रभु भक्त को जलाने का प्रयत्न किया, उसका हजारों वर्षों से हम पूजन किसलिए करते हैं? होलिका-पूजन के पीछे एक बात है। जिस दिन होलिका प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठने वाली थी, उस दिन नगर के सभी लोगों ने घर-घर में अग्नि प्रज्वलित कर प्रहलाद की रक्षा करने के लिए अग्निदेव से प्रार्थना की थी।
लोकहृदय को प्रहलाद ने कैसे जीत लिया था, यह बात इस घटना में प्रतिबिम्बित होती है। अग्निदेव ने लोगों के अंतःकरण की प्रार्थना को स्वीकार किया और लोगों की इच्छा के अनुसार ही हुआ। होलिका नष्ट हो गई और अग्नि की कसौटी में से पार उतरा हुआ प्रहलाद नरश्रेष्ठ बन गया। प्रहलाद को बचाने की प्रार्थना के रूप में प्रारंभ हुई घर-घर की अग्नि पूजा ने कालक्रमानुसार सामुदायिक पूजा का रूप लिया और उससे ही गली-गली में होलिका की पूजा प्रारंभ हुई।
संपदा देवी का पूजनधन-धान्य की देवी संपदाजी का पूजन होली के दूसरे दिन किया जाता है। इस दिन स्त्रियाँ संपदा देवी का डोरा बाँधकर व्रत रखती हैं तथा कथा कहती-सुनती हैं। मिठाई युक्त भोजन से व्रत खोला जाता है। हाथ में बँधे डोरे को वैशाख माह में किसी भी शुभ दिन शुभ घड़ी में खोल दिया जाता है। यह डोरा खोलते समय भी व्रत रखकर कथा कही-सुनी जाती है।
संपदा देवी का पूजन निम्नानुसार होता है-सर्वप्रथम पूजा की थाली में सारी पूजन सामग्री सजा लें। संपदा देवी का डोरा लेकर इसमें सोलह गठानें लगाएँ। (यह डोरा सोलह तार के सूत का बना होता है तथा इसमें सोलह गठानें भी लगाने का विधान है।) गठानें लगाने के बाद डोरे को हल्दी में रंग लें। तत्पश्चात चौकी पर रोली-चावल के साथ कलश स्थापित कर उस पर डोरा बाँध दें।इसके बाद कथा कहें-सुनें। कथा के पश्चात संपदा देवी का पूजन करें। इसके बाद संपदा देवी का डोरा धारण करें। पूजन के बाद सूर्य के अर्घ्य दें।